14 November, 2017

परखना मत, परखने में कोई अपना नहीं रहता

परखना मत, परखने में कोई अपना नहीं रहता
किसी भी आईने में देर तक चेहरा नहीं रहता

बडे लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना
जहां दरिया समन्दर में मिले, दरिया नहीं रहता

हजारों शेर मेरे सो गये कागज की कब्रों में
अजब मां हूं कोई बच्चा मेरा ज़िन्दा नहीं रहता

तुम्हारा शहर तो बिल्कुल नये अन्दाज वाला है
हमारे शहर में भी अब कोई हमसा नहीं रहता

मोहब्बत एक खुशबू है, हमेशा साथ रहती है
कोई इन्सान तन्हाई में भी कभी तन्हा नहीं रहता

कोई बादल हरे मौसम का फ़िर ऐलान करता है
ख़िज़ा के बाग में जब एक भी पत्ता नहीं रहता

बशीर बद्र

होठों पे मुहब्बत के फ़साने नहीं आते......

होठों पे मुहब्बत के फ़साने नहीं आते
साहिल पे समंदर के ख़ज़ाने नहीं आते।

पलके भी चमक उठती हैं सोते में हमारी
आंखों को अभी ख़्वाब छुपाने नहीं आते।

दिल उजडी हुई इक सराय की तरह है
अब लोग यहां रात बिताने नहीं आते।

उड़ने दो परिंदों को अभी शोख़ हवा में
फिर लौट के बचपन के ज़माने नहीं आते।

इस शहर के बादल तेरी जुल्फ़ों की तरह है
ये आग लगाते है बुझाने नहीं आते।

क्या सोचकर आए हो मुहब्बत की गली में
जब नाज़ हसीनों के उठाने नहीं आते।

अहबाब भी ग़ैरों की अदा सीख गये है
आते है मगर दिल को दुखाने नहीं आते।

बशीर बद्र

02 September, 2017

बुरे ज़माने कभी पूछ कर नहीं आते

बुरे ज़माने कभी पूछ कर नहीं आते
तुम्हारी राह में मिटटी के घर नहीं आते
इसीलिए तुम्हे हम नज़र नहीं आते
मोहब्बतो के दिनों की यही खराबी है
ये रूठ जाएँ तो लौट कर नहीं आते
जिन्हें सलीका है तहजीब-ए-गम समझाने का
उन्ही के रोने में आंसू नज़र नहीं आते
खुशी की आँख में आंसू की भी जगह रखना
बुरे ज़माने कभी पूछ कर नहीं आते
वसीम बरेलवी

उसूलों पे जहाँ आँच आये टकराना ज़रूरी है

उसूलों पे जहाँ आँच आये टकराना ज़रूरी है
उसूलों पे जहाँ आँच आये टकराना ज़रूरी है
जो ज़िन्दा हों तो फिर ज़िन्दा नज़र आना ज़रूरी है
नई उम्रों की ख़ुदमुख़्तारियों को कौन समझाये
कहाँ से बच के चलना है कहाँ जाना ज़रूरी है
थके हारे परिन्दे जब बसेरे के लिये लौटे
सलीक़ामन्द शाख़ों का लचक जाना ज़रूरी है
बहुत बेबाक आँखों में त’अल्लुक़ टिक नहीं पाता
मुहब्बत में कशिश रखने को शर्माना ज़रूरी है
सलीक़ा ही नहीं शायद उसे महसूस करने का
जो कहता है ख़ुदा है तो नज़र आना ज़रूरी है
मेरे होंठों पे अपनी प्यास रख दो और फिर सोचो
कि इस के बाद भी दुनिया में कुछ पाना ज़रूरी है
वसीम बरेलवी

ग़ज़ल

कौन सी बात कहाँ कैसे कही जाती है
कौन सी बात कहाँ कैसे कही जाती है
ये सलीका हो तो हर बात सुनी जाती है
एक बिगड़ी हुई औलाद भला क्या जाने
कैसे माँ बाप के होंठों से हंसी जाती है
कतरा अब एह्तिजाज़ करे भी तो क्या मिले
दरिया जो लग रहे थे समंदर से जा मिले
हर शख्स दौड़ता है यहाँ भीड़ की तरफ
फिर ये भी चाहता है उसे रास्ता मिले
इस दौर-ए-मुन्साफी में जरुरी नहीं वसीम
जिस शख्स की खता हो उसी को सजा मिले
वसीम बरेलवी

13 June, 2017


💝मेरे दोस्त......
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साथ साथ जो खेले थे बचपन में,
वो दोस्त अब थकने लगे है...

किसीका पेट निकल आया है,
किसीके बाल पकने लगे है...

सब पर भारी ज़िम्मेदारी है,
सबको छोटी मोटी कोई बीमारी है...

दिनभर जो भागते दौड़ते थे,
वो अब चलते चलते भी रुकने लगे है...

पर ये हकीकत है,
सब दोस्त थकने लगे है...

किसी को लोन की फ़िक्र है,
कहीं हेल्थ टेस्ट का ज़िक्र है...

फुर्सत की सब को कमी है,
आँखों में अजीब सी नमीं है...

कल जो प्यार के ख़त लिखते थे,
आज बीमे के फार्म भरने में लगे है...

पर ये हकीकत है 
सब दोस्त थकने लगे है...

देख कर पुरानी तस्वीरें,
आज जी भर आता है...

क्या अजीब शै है ये वक़्त भी,
किस तरहा ये गुज़र जाता है...

कल का जवान दोस्त मेरा,
आज अधेड़ नज़र आता है...

ख़्वाब सजाते थे जो कभी ,
आज गुज़रे दिनों में खोने लगे है...
पर ये हकीकत है 
सब दोस्त थकने लगे है...

24 May, 2017

अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपायें कैसे 
तेरी मर्ज़ी के मुताबिक नज़र आयें कैसे 

घर सजाने का तस्सवुर तो बहुत बाद का है 
पहले ये तय हो कि इस घर को बचायें कैसे 

क़हक़हा आँख का बर्ताव बदल देता है
हँसने वाले तुझे आँसू नज़र आयें कैसे 

कोई अपनी ही नज़र से तो हमें देखेगा 
एक क़तरे को समुन्दर नज़र आयें कैसे


                वसीम बरेलवी

20 April, 2017

वसीम बरेलवी की गजल

तुम्हारी राह में मिट्टी के घर नहीं आते
इसीलिए तो तुम्हें हम नज़र नहीं आते

मुहब्बतों के दिनों की यही ख़राबी है
ये रूठ जाएँ तो फिर लौटकर नहीं आते

जिन्हें सलीका है तहज़ीब-ए-ग़म समझने का
उन्हीं के रोने में आँसू नज़र नहीं आते

ख़ुशी की आँख में आँसू की भी जगह रखना
बुरे ज़माने कभी पूछकर नहीं आते

बिसाते-इश्क पे बढ़ना किसे नहीं आता
यह और बात कि बचने के घर नहीं आते

वसीम जहन बनाते हैं तो वही अख़बार
जो लेके एक भी अच्छी ख़बर नहीं आते

15 April, 2017

माँ

तू गहरी छाँव है अगर जिंदगी धूप है अम्मा,
धरा पर कब कहाँ तुझसा कोई स्वरुप है अम्मा।
अगर ईश्वर कहीं पर है उसे देखा कहाँ किसने,
धरा पर तो तू ही ईश्वर का कोई रुप है अम्मा।

भरे घर में तेरी आहट कहीं मिलती नहीं अम्मा,
तेरे हाथों की नरमाहट कहीं मिलती नहीं अम्मा।
मैं तन पे लादे फिरता हूँ दुशाले रेशमी फिर भी,
तेरी गोदी-सी गरमाहट कहीं मिलती नहीं अम्मा 

इधर कितना अकेला मै उधर तू कहीं अम्मा,
मुझे सब लोग कहते है कि तू अब है नही अम्मा।
महकता है ये घर आंगन तेरी ममता की खुशबू से,
मै कैसे मन लूँ कि दुनियां में तू अब है नही अम्मा।

22 March, 2017


*प्रार्थना और विश्वास*
      *दोनों अदृश्य  हैं*
*
*परंतु दोनों में इतनी ताकत है की*
 *नामुमकिन को मुमकिन*
         *बना देते हैं*
     
   🌹 *शुभ-प्रभात*🌹
🙏🌺🍁🌻🌷🌸🍀🌼🙏

20 March, 2017


केवल पैसों से आदमी धनवान नहीं होता
असली धनवान वो है जिसके पास
               अच्छी सोच
             अच्छे दोस्त और
               अच्छे विचार
Good morning Dear

इतिहास जानने के स्रोत

  इतिहास जानने के स्रोत ( कैसे पता करें कब क्या हुआ था? )  हमें इतिहास से क्या जानकारी प्राप्त होती है?    इतिहास से हमें बीते हुए समय और उस...