तू गहरी छाँव है अगर जिंदगी धूप है अम्मा,
धरा पर कब कहाँ तुझसा कोई स्वरुप है अम्मा।
अगर ईश्वर कहीं पर है उसे देखा कहाँ किसने,
धरा पर तो तू ही ईश्वर का कोई रुप है अम्मा।
भरे घर में तेरी आहट कहीं मिलती नहीं अम्मा,
तेरे हाथों की नरमाहट कहीं मिलती नहीं अम्मा।
मैं तन पे लादे फिरता हूँ दुशाले रेशमी फिर भी,
तेरी गोदी-सी गरमाहट कहीं मिलती नहीं अम्मा
इधर कितना अकेला मै उधर तू कहीं अम्मा,
मुझे सब लोग कहते है कि तू अब है नही अम्मा।
महकता है ये घर आंगन तेरी ममता की खुशबू से,
मै कैसे मन लूँ कि दुनियां में तू अब है नही अम्मा।
धरा पर कब कहाँ तुझसा कोई स्वरुप है अम्मा।
अगर ईश्वर कहीं पर है उसे देखा कहाँ किसने,
धरा पर तो तू ही ईश्वर का कोई रुप है अम्मा।
भरे घर में तेरी आहट कहीं मिलती नहीं अम्मा,
तेरे हाथों की नरमाहट कहीं मिलती नहीं अम्मा।
मैं तन पे लादे फिरता हूँ दुशाले रेशमी फिर भी,
तेरी गोदी-सी गरमाहट कहीं मिलती नहीं अम्मा
इधर कितना अकेला मै उधर तू कहीं अम्मा,
मुझे सब लोग कहते है कि तू अब है नही अम्मा।
महकता है ये घर आंगन तेरी ममता की खुशबू से,
मै कैसे मन लूँ कि दुनियां में तू अब है नही अम्मा।
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